Monday, February 29, 2016

फिर ना कहना

अब सब सोचते है अपनी ख़ुशियों के बारे में,
सबके संसार है अलग, और सबके रास्ते भी,
सबको मंज़िल दिखती है,
कोई उस मंज़िल तक साथी के साथ नहीं पहुँचना चाहता,
काश मैं भी उसी संसार का हिस्सा होती,
इतना बुरा नहीं लगता शायद तब,
समझ पाती सबको बेहतर,
स्वार्थ में पाती आनन्द,
पर अब मैं ऐसी तो ना हूँ,
मैंने तो अपना ही एक संसार बनाया था इस संसार में,
हाथ पकड़ कर तुम्हारा दहलीज़ में रखा था क़दम,
छोटे छोटे पोधे लगाए थे दो चार,
वर्षा होने पर आँगन में आँचल फैला कर झूमी थी मैं,
तुम्हारी ही इन बाज़ुओं में बितायी थी रातें,
तुम्हारे ही आग़ोश में बिताना था जीवन,
तो क्या हुआ एक दिन समान समेट कर जो तुम चलें गये,
तो क्या हुआ एक दिन नाता तोड़ कर जो तुम चलें गये,
तो क्या हुआ जो तुमने मुझे अपना ना बनाया,
तो क्या हुआ जो तुमने ग़ैरों के ख़ातिर मेरा दिल दुखाया,
टुकड़े हो चुकें है अब इतने की गिन भी नहीं सकती मैं,
आँसू बह चुके इतने की गीला है मेरा तन और मन,
बहुत दूर चली जाऊँ जब तब ये शिकायत ना करना,
की मैंने तुम्हें अपना हृदय खोल कर ना दिखाया,
की मैंने तुम्हारी इबादत ना की,
की मैंने तुम्हें अपना खुदा ना बनाया!

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