Saturday, October 25, 2014

तुम

वो पिछली सुबह जो एक बूँद मोती की तरह  बैठी थी ना पत्ते पर, याद है तुम्हे?
जिसे घूँट भर पी लिया था मैंने, जाने कैसे एक बूँद से प्यास बुझी थी,
मुझे लगता है तुम वही बूँद हो!
आँखों में सूरमा लगाया था मैंने, वो रुक कर पीर के बाजार से ली थी न एक डब्बी,
लगाती हूँ तो अलग ही नूर छा जाता है चेहरे पर,
तुम सूरमे की वही डब्बी हो!
एक लाल दुपट्टा बनवाया था पिछली गर्मियों, सुनहरी जरि की किनारी है जिस पर ,
जिसको लपेटे मैं पूरे घर भर में घूमा फिरती हूँ बिना बात,
उस दुपट्टे की लाली हो तुम!
बाल लम्बे हो गए है देखो कितने, सुबह आज कैसे बल पड़े थे सारे बालो में,
सुन्दर लग रहे थे न, जल पड़ी थी वो कुम्हार की लड़की जो गुल्लक देने आई थी,
तुम ही तो हो वो घुंघराले छल्ले मेरे बालो के!
कल  लड्डू बांधे थे मैंने बेसन के, तुम्हारा घर जब खुश्बुओ से भर गया था,
कैसे भागे आये थे तुम मीठा चखने के बहाने!
तुम्ही तो हो वो सारी खुशबुएँ !
मेरे हाथ क्यों घंटो पकडे बैठे रहते हो?
महसूस किया कभी की कैसे मुलायम हाथ है मेरे?
वो जो मखमल मखमल सा महसूस होता है, वो तुम्ही तो हो!
 पता है तुम्हे,   कल एक लाल गुलाब मिला पलंग पर, जब सो कर उठी मैं,
उसे देख तो मुस्कुरा ही पड़ी, पापा ने रख दिया था मेरे पास,
उन्हें कैसे पता लगा की मुझे तुम चाहिए?
जब लबो से लगा कर गिलास पानी पीती हूँ ना मैं,
और पानी का कतरा कतरा जैसे गले से नीचे उतरता हुआ आवाज करता है,
पिलाने वाले को पता चलता है की प्यास बुझ गयी प्यासे की,
तुम वही कतरा कतरा पानी हो मेरे जीवन के!