Sunday, September 29, 2013

Words

You are just words.
Then what is it that makes me so happy when I pour you out?
Doesn't matter if you are in a story or a poem.

I hold you together and mold you upside down
I define your existence

You are my creation
You are my thoughts
and yet you express me
You bring out the poet in me
that I did not know existed even layers beneath

एक घर

घर बसाना चाहती हूँ एक तुम्हारे साथ
छोटा सा, दूर उस नदी के पार
क्यारियों में लाल गुलाब लगायेगे
उस नीम के पेड़ पर झूला दल्वायेगे
दीवारों पर तुम्हारी मेरी तस्वीरें लगायेगे
तस्वीरो से झांकती हुई हंसी में खिल्खिलायेगे
चिड़िया मैना के लिए एक छोटी सी मटकी टान्गेगे
बच्चे जब निकलेगे उनके, उन्हें फुर फुर उड़ायेंगे
सर्दियों में धूप सेंकेंगे आँगन में बैठ कर
दिन ढलेगा जब, तब अन्दर आ जायेगे
चाय पीयेगे बैठ कर घर की देहलीज पर
दुनिया को देखेगे बस दूर से ही सहज कर
बसंत में बागीचे के पेड़ पर फूल जब आयेगे
गुलदस्ता उनका बना कर कमरे में सजायेगे
बारिशे जब होगी और हवा चलेगी तेज खूब
खिड़की दरवाजें बंद कर घर में दुबक जायेगे
ऐसा नहीं है की डर लगता है तूफाँ से मुझे
तूफाँ तो देख चुकी हूँ बहोत मैं
महफूज लगता है पर करीब तुम्हारे
जितना नहीं लगता किसी भी और किनारे

एक बार काश तुम कहते 
भले झूठ ही सही 
पर मेरा दिल तो बहलाते 
की आ जाओगे सब छोड़ कर मेरे लिए
समेट लोगे मुझे बाहों में अपनी 
उससे ज्यादा कुछ और मुझे चाहिए भी तो नहीं
यूँ तो मैं लड़ सकती हूँ सबसे
पर जब बात आती है तुम्हारी
खुद के ही आगे कमज़ोर पड़ जाती हूँ 
हकीकत के झरोको से सपनो में झांकती हूँ
तुम्हारे साथ एहसास जो इतने जुडे है
अलग करती हूँ उन्हें तो वो चीख पड़ते है
पर तुम चिंता ना करना
भुझा दूगी उन सपनो के दिए मैं 
दबा दूगी उन एहसासों को माटी तले मैं 
जो परेशां करते है तुम्हे
और जिन्हें पूरा करने के लिए शायद दूसरा जन्म हमें लेना पड़े

Smiling back at me..

There are times when people refer to themselves as we,

I guess I shall feel alone then.

But all I do is close my eyes

and in the infinite darkness of this world

I can see your face.

I can see you are smiling back at me. No matter what.

एहसास

तेरी खुश्बु है आती अभि तक मेरी रूह से
तेरे स्पर्ष का है एहसास बाकि अभि
तेरे हाथों की गर्मी को महसूस करति हू मै
तेरे हाथों की नर्मी क एहसास भी गया नहीं
बालों मे हर संसनाहट का तु हि जिम्मेदार है
होठो के कपकपाने कि वजह भी है तु हि
उन सुन्हरी सुबहो मे साथ तु था जब
मुस्कुरआती हुइ आती थि किरने भी
शामो का तो पूछना हि क्या
ऐसी चाँदनी तो कभी रातों मे घुली हि नहीं
ठण्डी हवा और वो बारिश कि बूँदे
भीगे हुये हम एक दूसरे के नशे मे
मअदहोशी क एक अलग हि समा था
होश कहाँ था किसी को क्या पता था
रातो मे करवट लू  तो लगता है काष बाहों मे भर सक्ती तुम्हे अभि
नींद जब आती नहीं तो लगता है बातें कर सक्ति तुम्से युही
कोन कह्ता है मै याद करति हू तुम्हे
मै तो कोशिश करति हू बस तिनका भर भूल्ने की