एक बूँद जो आ कर ठिठक गयी है होठों पर,
किसका कर रही है ये इंतजार ?
प्यास भुजायेगी क्या ये मेरी,
या ये भी हो जाएगी युहीं बेकार?
उसने हाथ थामा तो था,
कुछ महसूस तो हुआ नहीं,
करीब आते आते वो रुका तो था,
दिल पर कसमसाया तो नहीं
मोहब्बत की उस शमशीर के नीचे,
हम आये नहीं शायद,
वार उन पर तो हुआ है,
हमारी ही किस्मत ने फिर से साथ निभाया नहीं
उठते गिरते पलकों के परदे से,
जलती भुजती आँखों की चिलमन से,
नब्ज़ की रफ़्तार से,
साँसों के बहाव से,
यकीन सा होता है,
मोहब्बत का वो जाम शायद कुछ अधूरा सा है,
शायद कुछ अधूरा सा है
No comments:
Post a Comment