Monday, February 29, 2016

हमनशी

तुम से पागल को मिल के कुछ यूँ लगता है सनम ; 
यूँ खुद से गुफ्तगू , हम यूँ ही कर रहे थे |

 खुद को पागल तो कह दिया तुमने यूँ ; पर कैसे बंया करे, 
कि तुम्हारी हर गुफ्तगू में हम शरीक थे |

 क़ायल यूँ तुझ पे, ऐसे ही नही हैं सनम| 
अभी आँखें खोली, तो नज़ारा क्या देखता हूँ? जो मैं था वो तुम निकले, ये ग़ज़ब कश्मकश है|


ये कश्मकश नहीं, मैं और तुम है । 
ऐसा जुर्म ना करो, खुली से नहीं, बंद आँखों से देखो,
नया नहीं, बहोत पुराना ये वाक़या है,
तुम्हारी शख्सियत में मेरी परछाई,
और मेरी में तुम्हारी रहा करती है,
इसलिए तो ये सारा जमाना फब्तियां कसता है। 
मैंने कई मर्तबा सोचा तुम्हे बताऊँ,
मुझे यूँ लगा लेकिन, की जैसे तुम्हे पता है।


जाने कब से पता है, मेरा मैं तेरे तू मे बसता है| 

कश्मकश कुछ ऐसी थी, हम खुद में मैं और तू जुदा कर रहे थे|
अब लगता है खुद में खुदा है, तो कश्मकश कैसी?
आ मैं और तू अब एक नाद हो चलते हैं |
हम में खुदा है या खुदा में हम है,



किसको खबर  है?
ऐ मेरे हमनशी, आ अब साथ चलें। 
उस अंत तक या उस शुरुआत तक,
आ अब साथ चलें। 


Heart is Calling Out

He went deep inside,
he could not reach me though.
I still don’t imagine myself with him,
I want to let him go.
I want to not associate with him,
I want him to fade away.
I want him to give up on things,
I want him to make another way.
I wish his intelligence could penetrate me,
I wish his sweetness could dissolve me,
I wish his smile could behold me,
I wish his appeal could appeal me.
His innocence sure craves me,
his heart pounds on me,
his mind is trying to seal me
and his happiness is bound on me.
I look at him
and then I look away.
Why do they say that I need to try?
Isn’t it very clear?
His shadow is gone from the rear view mirror
and his footsteps are nowhere near.
I can not embed this maturity,
I can not just appreciate the love,
I look at my reflection in the mirror
and I never look beyond and above.
His senses might go wrong,
his judgment might be fool him,
his eyes might say something else,
but his heart still betrays him.
Should I just listen to the heart
and ignore the rest?
The heart calls out to me.
Maybe, the heart calls out to me.

Few words

You are the weed of my life. I am high on you. I see you coming riding towards me. Riding on the waves of sea. They are high, powerful and nasty. I am riding these waves with you. I know anytime I could drown. I know anytime a higher wave can wash us away. I know anytime you might loose the hold and go deep into water. I will still ride these waves. I will wait for them to rise higher and higher. I will wait so that they might throw me so deep that I can't ever come back.

Who are you?

Are you in the clouds that move here and there, are you the rain that they hold?
Are you the flower that just blossomed on the apple tree in the backyard?
Are you the new song that the fisherman is singing?
Are you the same mountain that I climb everyday?
Are you the new rhythm that I keep tapping to?
Are you the cold water from that blue bottle that I keep in the fridge?
Are you in the bread, the one that I bake every Sunday?
Are you the new book that I am reading, that I can't sleep without?

I somehow have a feeling that you have something to do with all these things.
Tell me the truth, will you please?

चंद शब्द

लिखे थे अल्फ़ाज़ कुछ हमने भी,
सब अशको से हमारे धुल गये,
ये काली स्याही है या काजल,
अब कोई ग़ैर हि बताये,
ये पानी के सागर इन पन्नो पर,
अब सूख जाएँगे जल्द ही,
पन्नो पर निशान बस रह जाएँगे,
ऊबड़ खाबड़  से कुछ,
जैसे हमारे दिल के नासाज़ ज़ख़्म ,
कुछ भरे से और कुछ लाल सुर्ख

फिर ना कहना

अब सब सोचते है अपनी ख़ुशियों के बारे में,
सबके संसार है अलग, और सबके रास्ते भी,
सबको मंज़िल दिखती है,
कोई उस मंज़िल तक साथी के साथ नहीं पहुँचना चाहता,
काश मैं भी उसी संसार का हिस्सा होती,
इतना बुरा नहीं लगता शायद तब,
समझ पाती सबको बेहतर,
स्वार्थ में पाती आनन्द,
पर अब मैं ऐसी तो ना हूँ,
मैंने तो अपना ही एक संसार बनाया था इस संसार में,
हाथ पकड़ कर तुम्हारा दहलीज़ में रखा था क़दम,
छोटे छोटे पोधे लगाए थे दो चार,
वर्षा होने पर आँगन में आँचल फैला कर झूमी थी मैं,
तुम्हारी ही इन बाज़ुओं में बितायी थी रातें,
तुम्हारे ही आग़ोश में बिताना था जीवन,
तो क्या हुआ एक दिन समान समेट कर जो तुम चलें गये,
तो क्या हुआ एक दिन नाता तोड़ कर जो तुम चलें गये,
तो क्या हुआ जो तुमने मुझे अपना ना बनाया,
तो क्या हुआ जो तुमने ग़ैरों के ख़ातिर मेरा दिल दुखाया,
टुकड़े हो चुकें है अब इतने की गिन भी नहीं सकती मैं,
आँसू बह चुके इतने की गीला है मेरा तन और मन,
बहुत दूर चली जाऊँ जब तब ये शिकायत ना करना,
की मैंने तुम्हें अपना हृदय खोल कर ना दिखाया,
की मैंने तुम्हारी इबादत ना की,
की मैंने तुम्हें अपना खुदा ना बनाया!