तुम दूर हो फिर भी खुद को पूरा महसूस करती हूँ मैं,
तुम्हारी बिखरी बिखरी सी खुशबू है घर में,
उसको इकट्ठा करती फिरती हूँ मैं,
तुम साथ नहीं सोते, पर रजाई में सिलवटें तो वही है,
तुम आगोश में नहीं लेते,
पर मेरे शरीर में सरसराहट तो वही की वही है,
तुम देख नहीं सकते,
पर सँवरती तो मैं रोज हूँ,
तुम चूम नहीं सकते,
पर आँखें बंद कर इंतजार तो करती हूँ मैं,
हाथ बढ़ा कर बाँहों में भर नहीं सकती तो क्या हुआ,
तुम्हारे इंतजार में हर एक पल के साथ पिघल तो सकती हूँ मैं।
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